Sunday, November 25, 2012

दिल में ऐसे उतर गया कोई:सूर्यभानु गुप्त




दिल में ऐसे उतर गया कोई
जैसे अपने ही घर गया कोई 
 
एक रिमझिम में बस, घड़ी भर की
दूर तक तर-ब-तर गया कोई
 
आम रस्ता नहीं था मैं, फिर भी
मुझसे हो कर गुज़र गया कोई 
 
दिन किसी तरह कट गया लेकिन
शाम आई तो मर गया कोई 
 
इतने खाए थे रात से धोखे
चाँद निकला कि डर गया कोई 
 
किसको जीना था छूट कर तुझसे
फ़लसफ़ा काम कर गया कोई
 
मूरतें कुछ निकाल ही लाया 
पत्थरों तक अगर गया कोई 
 
मैं अमावस की रात था, मुझमें
दीप ही दीप धर गया कोई
 
इश़्क भी क्या अजीब दरिया है
मैं जो डूबा, उभर गया कोई



जन्म : २२ सितम्बर, १९४०, नाथूखेड़ा (बिंदकी), जिला : फ़तेहपुर ( उ.प्र.)। बचपन से ही मुंबई में। १२ वर्ष की उम्र से कविता लेखन की शुरुआत।
प्रकाशन : पिछले ५० वर्षों के बीच विभिन्न काव्य-विधाओं में ६०० से अधिक रचनाओं के अतिरिक्त २०० बालोपयोगी कविताएँ प्रमुख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। समवेत काव्य-संग्रहों में संकलित एवं गुजराती, पंजाबी, अंग्रेजी में अनूदित।
गीत-लेखन : 'गोधूलि' (निर्देशक गिरीश कर्नाड ) एवं 'आक्रोश' तथा 'संशोधन' (निर्देशक गोविन्द निहलानी ) जैसी प्रयोगधर्मा फ़िल्मों के अतिरिक्त कुछ नाटकों तथा आधा दर्जन दूरदर्शन- धारवाहिकों में गीत शामिल।
प्रथम काव्य-संकलन : एक हाथ की ताली (१९९७), वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली- ११०००२
पुरस्कार : १. भारतीय बाल-कल्याण संस्थान, कानपुर।
२. परिवार पुरस्कार (१९९५), मुम्बई।
संप्रति :  सम्प्रति स्वतंत्र लेखन।

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