Saturday, November 10, 2012

कोई उम्मीद बर नहीं आती : 'ग़ालिब'

कोई उम्मीद बर नहीं आती 
कोई सूरत नज़र नहीं आती 


मौत का एक दिन मु'अय्यन है 
नींद क्यों रात भर नहीं आती 


आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी 
अब किसी बात पर नहीं आती 


जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद 
पर तबीयत इधर नहीं आती 


है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ 
वर्ना क्या बात कर नहीं आती 


क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं 
मेरी आवाज़ गर नहीं आती 


दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता 
बू-ए-चारागर नहीं आती 


हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी 
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती 


मरते हैं आरज़ू में मरने की 
मौत आती है पर नहीं आती 


काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' 
शर्म तुमको मगर नहीं आती 

koi ummiid bar nahii.n aatii  
suurat nazar nahii.n aatii 

maut kaa ek din mu'ayyaa.N hai 
nii.nd kyo.n raat bhar nahii.n aatii 
[mu'ayyaa.N=definite] 

aage aatii thii haal-e-dil pe ha.Nsii 
ab kisii baat par nahii.n aatii 

jaanataa huu.N savaab-e-taa'at-o-zahad 
par tabiiyat idhar nahii.n aatii 
[savaab=reward of good deeds in next life, taa'at=devotion, zahad=religious deeds] 

hai kuchh aisii hii baat jo chup huu.N 
varna kyaa baat kar nahii.n aatii 

kyo.n na chiiKhuu.N ki yaad karate hai.n 
merii aavaaz gar nahii.n aatii 

daaG-e-dilagarnazar nahii.n aata 
buu bhii ai chaaraagar nahii.n aatii 
[chaaraagar=healer/doctor ] 

ham vahaa.N hai.n jahaa.N se ham ko bhii 
kuchh hamaarii Khabar nahii.n aatii 

marate hai.n aarazuu me.n marane kii 
maut aatii hai par nahii.n aatii 

kaabaa kis muu.Nh se jaaoge 'Ghalib' 
sharm tumako magar nahii.naatii 


मिर्ज़ा असद-उल्लाह ख़ां उर्फ “ग़ालिब” (27 दिसंबर 1796 – 15 फरवरी 1869उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे । इनको उर्दू का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का भी श्रेय दिया जाता है । यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी मीर भी इसी वजह से जाने जाता है । ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है । ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है ।
ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे । आगरा, दिल्ली और कलकत्ते में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्जू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है । उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में बहुत से कवि-शायर ज़रूर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है:
“हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”



No comments:

Post a Comment