Sunday, November 18, 2012

सीने में जलन: शहरयार


सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है 
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढ़े 
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान1 सा क्यूँ है

तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो 
ता-हद्द-ए-नज़र 2 एक बयाबान सा क्यूँ है

हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की 
वो ज़ूद-ए-पशेमान 3 पशेमान सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें 
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है

1. without direction and life 

2. till the eye goes

3. easy repenter( as a taunt)




Sine Men Jalan Aankhon Men Tuufaan Saa Kyon Hai
Is Shahar Men Har Shaks Pareshaan Saa Kyon Hai

Dil Hai To Dhadakane Kaa Bahaanaa Koi Dhuundhe
Patthar Ki Tarah Behis-O-Bejaan Saa Kyon Hai

Tanahaai Ki Ye Kaun Si Manzil Hai Rafiqon
Taa-Hadd-E-Nazar Ek Bayaabaan Saa Kyon Hai

Kyaa Koi Nai Baat Nazar Aati Hai Ham Men
Aainaa Hamen Dekh Ke Hairaan Saa Kyon Hai





जन्म: 16 जून 1936, 
निधन: 13 फ़रवरी 2012


उपनाम: शहरयार
जन्म स्थान: आँवला, बरेली, उत्तरप्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ:
'गमन', 'अंजुमन' और उम्रराव जानजैसी फ़िल्मों के गीतकार। साहित्य अकादमी पुरस्कार (1987), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2008)। अलीगढ़ विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफ़ेसर और उर्दू विभाग के अध्यक्ष रहे ।

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