Saturday, April 20, 2013

नगरी नगरी फिरा मुसाफिर घर का रस्ता भूल गया


नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

कैसे दिन थे कैसी रातें,कैसी बातें-घातें थी 
मन बालक है पहले प्यार का सुन्दर सपना भूल गया 

सूझ-बुझ की बात नहीं है मनमोहन है मस्ताना 
लहर लहर से जा सर पटका सागर गहरा भूल गया 

अपनी बीती जग बीती है जब से दिल ने जान लिया
हँसते हँसते जीवन बीता रोना धोना भूल गया

अँधिआरे से एक किरन ने झाँक के देखा, शर्माई
धुँध सी छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया

हँसी हँसी में खेल खेल में बात की बात में रंग गया
दिल भी होते होते आख़िर घाव का रिसना भूल गया

एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब एक पल बीता भूल गया

जिस को देखो उस के दिल में शिकवा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद रहा पर हम को ज़माना भूल गया

कोई कहे ये किस ने कहा था कह दो जो कुछ जी में है
मीराजीकह कर पछताया और फिर कहना भूल गया

 




nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa 




nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa 
kyaa hai teraa kyaa hai meraa apanaa paraayaa bhuul gayaa


apanii biitii jag biitii hai jab se dil ne jaan liyaa 
ha.Nsate ha.Nsate jiivan biitaa ronaa dhonaa bhuul gayaa


a.Ndhyaare se ek kiran ne jhaa.Nk ke dekhaa sharmaa_ii 
dhu.Ndh sii chhab to yaad rahii kaisaa thaa cheharaa bhuul gayaa


ha.Nsii ha.NSii me.n khel khel me.n baat kii baat me.n rang gayaa 
dil bhii hote hote aaKhir ghaav kaa risanaa bhuul gayaa


ek nazar kii ek hii pal kii baat hai Dorii saa.Nso.n kii 
ek nazar kaa nuur miTaa jab ek pal biitaa bhuul gayaa


jis ko dekho us ke dil me.n shiavaa hai to itanaa hai 
hame.n to sab kuchh yaad rahaa par ham ko zamaanaa bhuul gayaa

ko_ii kahe ye kis ne kahaa thaa kah do jo kuchh jii me.n hai 
                      "Miraji" kah kar pachhataayaa aur phir kahanaa bhuul gayaa



मशहूर अफसानानिगार सादत हसन मंटो साहब की एक किताब है 'मीनाबाज़ार'। इस किताब में उन्होने बड़े अपनेपन के साथ मीराजी को याद किया है। मीराजी (२५ मई १९१२-४ नवम्बर १९४९ ) का असली नाम मोहम्मद सनाउल्लाह सानी था। फितरत से आवारा और हद दर्जे के बोहेमियन मीराजी ने यह उपनाम अपने एक असफल प्रेम की नायिका मीरा सेन के गम से प्रेरित हो कर धरा था। सन १९१२ में पैदा हुए इस शायर को उर्दू भाषा में प्रतीकवाद का प्रवर्तक माना जाता  हैं।

उन के पिता भारतीय रेलवे में बड़े अधिकारी थे लेकिन घर से मीराजी की कभी नहीं बनी और कुल जमा ३७ साल की उम्र का बड़ा हिस्सा उन्होने एक बेघर शराबी के तौर पर बिताया। छोटी-बड़ी पत्रिकाओं के लिए गीत और लेख लिख कर उनका गुज़ारा होता था। मीराजी के दोस्तों ने उन्हें बहुत मोहब्बत दी और अंत तक उनका ख़याल रखा। कहा जाता है की बाद बाद के सालों में वे मानसिक संतुलन खो चुके थे।


फ्रांसीसी कवि चार्ल्स बौद्लेयर को अपना उस्ताद मानने वाले मीराजी संस्कृतअंग्रेजी और फारसी (संभवतः फ्रेंच भी) जानते थे। उनकी सारी रचनाएं १९८८ में जाकर 'कुल्लियात-ए-मीराजीशीर्षक से छप सकीं। उन्होने संस्कृत से दामोदर गुप्त और फारसी से उमर खैय्याम की रचनाओं का उर्दू तर्जुमा किया। मीराजी की यह ग़ज़ल (जिसका ज़िक्र मंटो की 'मीनाबाज़ारमें भी आता है) कुछ साल पहले गुलाम अली ने 'हसीन लम्हेनाम के अल्बम में गाई थी।
('कबाड्खाना'ब्लॉगसे)

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