दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं|
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली,
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं|
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं|
जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए,
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं|
वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था,
उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं|
dil kii baat labo.n par laakar
dil kii baat labo.n par laakar ab tak ham dukh sahate hai.n
ham ne sunaa thaa is bastii me.n dil vaale bhii rahate hai.n
biit gayaa saavan kaa mahiinaa mausam ne nazare.n badalii
lekin in pyaasii aa.Nkho.n me.n ab tak aa.Nsuu bahate hai.n
ek hame.n aavaaraa kahanaa ko_ii ba.Daa ilzaam nahii.n
duniyaa vaale dil vaalo.n ko aur bahut kuchh kahate hai.n
jis kii Khaatir shahar bhii chho.Daa jis ke liye bad_naam hue
aaj vahii ham se begaane begaane se rahate hai.n
vo jo abhii rah_guzar se chaak-e-garebaa.N guzaraa thaa
us
aavaaraa diivaane ko 'Jalib'-'Jalib' kahate hai.n
हबीब अहमद
जन्म: 24 मार्च 1928
निधन: 12
मार्च 1993
उपनाम: हबीब
जालिब
जन्म स्थान:
होशियारपुर, पंजाब, भारत
विविध: कराची के 'डेली
इमरोज़' में प्रूफ़-रीडर रहे। आधी ज़िन्दगी जेलों में बीती
क्योंकि हमेशा सरकार के विरोध में रहे।
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