जोग बिजोग की बातें झूठी सब जी का बहलाना हो|
फिर भी हम से जाते जाते एक ग़ज़ल सुन जाना हो|
सारी दुनिया अक्ल की बैरी कौन यहां पर सयाना हो,
नाहक़ नाम धरें सब हम को दीवाना दीवाना हो|
तुम ने तो इक रीत बना ली सुन लेना शर्माना हो,
सब का एक न एक ठिकाना अपना कौन ठिकाना हो|
नगरी नगरी लाखों द्वारे हर द्वारे पर लाख सुखी,
लेकिन जब हम भूल चुके हैं दामन का फैलाना हो|
तेरे ये क्या जी में आई खींच लिये शर्मा कर होंठ,
हम को ज़हर पिलाने वाली अमृत भी पिलवाना हो|
हम भी झूठे तुम भी झूठे एक इसी का सच्चा नाम,
जिस से दीपक जलना सीखा परवाना मर जाना हो|
सीधे मन को आन दबोचे मीठी बातें सुन्दर लोग,
'मीर', 'नज़ीर', 'कबीर', और 'इन्शा' सब का एक घराना हो|
जन्म: 1927
निधन: 1978
कुछ प्रमुखकृतियाँ: इस बस्ती के एक कूचे में, चाँद नगर, दुनिया गोल है, उर्दू की आख़िरी किताब
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