नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या
है मेरा अपना पराया भूल गया
कैसे दिन थे कैसी
रातें,कैसी
बातें-घातें थी
मन बालक है पहले
प्यार का सुन्दर सपना भूल गया
सूझ-बुझ की बात नहीं
है मनमोहन है मस्ताना
लहर लहर से जा सर
पटका सागर गहरा भूल गया
अपनी बीती जग बीती
है जब से दिल ने जान लिया
हँसते हँसते जीवन
बीता रोना धोना भूल गया
अँधिआरे से एक किरन
ने झाँक के देखा, शर्माई
धुँध सी छब तो याद
रही कैसा था चेहरा भूल गया
हँसी हँसी में खेल
खेल में बात की बात में रंग गया
दिल भी होते होते
आख़िर घाव का रिसना भूल गया
एक नज़र की एक ही पल
की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा
जब एक पल बीता भूल गया
जिस को देखो उस के
दिल में शिकवा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद
रहा पर हम को ज़माना भूल गया
कोई कहे ये किस ने
कहा था कह दो जो कुछ जी में है
“मीराजी” कह कर पछताया और फिर
कहना भूल गया
nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa
nagarii nagarii phiraa musaafir
ghar kaa rastaa bhuul gayaa
kyaa hai teraa kyaa hai meraa apanaa paraayaa bhuul gayaa
apanii biitii jag biitii hai
jab se dil ne jaan liyaa
ha.Nsate ha.Nsate jiivan biitaa ronaa dhonaa bhuul gayaa
a.Ndhyaare se ek kiran ne
jhaa.Nk ke dekhaa sharmaa_ii
dhu.Ndh sii chhab to yaad rahii kaisaa thaa cheharaa bhuul gayaa
ha.Nsii ha.NSii me.n khel khel
me.n baat kii baat me.n rang gayaa
dil bhii hote hote aaKhir ghaav kaa risanaa bhuul gayaa
ek nazar kii ek hii pal kii
baat hai Dorii saa.Nso.n kii
ek nazar kaa nuur miTaa jab ek pal biitaa bhuul gayaa
jis ko dekho us ke dil me.n
shiavaa hai to itanaa hai
hame.n to sab kuchh yaad rahaa par ham ko zamaanaa bhuul gayaa
ko_ii kahe ye kis ne kahaa thaa
kah do jo kuchh jii me.n hai
"Miraji" kah kar pachhataayaa aur phir kahanaa bhuul gayaa
मशहूर अफसानानिगार सादत हसन मंटो साहब की एक किताब है 'मीनाबाज़ार'। इस किताब में उन्होने बड़े अपनेपन के साथ मीराजी को याद किया है। मीराजी (२५ मई १९१२-४ नवम्बर १९४९ ) का असली नाम मोहम्मद सनाउल्लाह सानी था। फितरत से आवारा और हद दर्जे के बोहेमियन मीराजी ने यह उपनाम अपने एक असफल प्रेम की नायिका मीरा सेन के गम से प्रेरित हो कर धरा था। सन १९१२ में पैदा हुए इस शायर को उर्दू भाषा में प्रतीकवाद का प्रवर्तक माना जाता हैं।
फ्रांसीसी कवि चार्ल्स बौद्लेयर को अपना उस्ताद मानने वाले मीराजी संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी (संभवतः फ्रेंच भी) जानते थे। उनकी सारी रचनाएं १९८८ में जाकर 'कुल्लियात-ए-मीराजी' शीर्षक से छप सकीं। उन्होने संस्कृत से दामोदर गुप्त और फारसी से उमर खैय्याम की रचनाओं का उर्दू तर्जुमा किया। मीराजी की यह ग़ज़ल (जिसका ज़िक्र मंटो की 'मीनाबाज़ार' में भी आता है) कुछ साल पहले गुलाम अली ने 'हसीन लम्हे' नाम के अल्बम में गाई थी।
('कबाड्खाना'ब्लॉगसे)