ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई कि घड़ी हो जैसे
अपने ही साये से हर गाम[1] लरज़[2] जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे
मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पावों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे
तेरे माथे की शिकन [3]पहले भी देखी थी मगर
यह गिरह[4] अब के मेरे दिल पे पड़ी हो जैसे
कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे
आज दिल खोल के रोये हैं तो यूँ ख़ुश हैं "फ़राज़"
चंद लम्हों[5] की ये राहत[6] भी बड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई कि घड़ी हो जैसे
अपने ही साये से हर गाम[1] लरज़[2] जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे
मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पावों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे
तेरे माथे की शिकन [3]पहले भी देखी थी मगर
यह गिरह[4] अब के मेरे दिल पे पड़ी हो जैसे
कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे
आज दिल खोल के रोये हैं तो यूँ ख़ुश हैं "फ़राज़"
चंद लम्हों[5] की ये राहत[6] भी बड़ी हो जैसे
शब्दार्थ:
aise chup hai.n ke ye manzil bhii ka.Dii ho jaise
aise chup hai.n ke ye
manzil bhii ka.Dii ho jaise
teraa milanaa bhii
judaa_ii ki gha.Dii ho jaise
apane hii saaye se har
gaam laraz jaataa huu.N
raaste me.n ko_ii
diivaar kha.Dii ho jaise
manzile.n duur bhii
hai.n manzile.n nazadiik bhii hai.n
apane hii paao.n me.n
zanjiir pa.Dii ho jaise
kitane naadaan hai.n
tere bhulane vaale ke tujhe
yaad karane ke liye umr
pa.Dii ho jaise
aaj dil khol ke roye
hai.n to yuu.N Khush hai 'Faraz'
chand lamho.n kii ye
raahat bhii ba.Dii ho jaise
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