Tuesday, April 29, 2014

तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई ज़मीन नहीं: दुष्यन्त कुमार


तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई ज़मीन नहीं ,

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं |


 मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ 

मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं | 


तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह 

तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं | 


तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें ,

अदीब यों तो सियासी है पर कमीन नहीं | 


तुझे क़सम है खुदी को बहुत हलाक न कर ,

तू इस मशीन का पुर्ज़ा है ,तू मशीन नहीं |


 बहुत मशहूर हैं आयें जरुर आप यहाँ 

ये मुल्क देखने के लायक़ तो है ,हसीन नहीं | 


ज़रा सा तौर -तरीकों में हेर -फेर करो ,

तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं |

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