Tuesday, April 29, 2014

तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई ज़मीन नहीं: दुष्यन्त कुमार


तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई ज़मीन नहीं ,

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं |


 मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूँ 

मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं | 


तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह 

तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं | 


तुम्हीं से प्यार जताएँ तुम्हीं को खा जायें ,

अदीब यों तो सियासी है पर कमीन नहीं | 


तुझे क़सम है खुदी को बहुत हलाक न कर ,

तू इस मशीन का पुर्ज़ा है ,तू मशीन नहीं |


 बहुत मशहूर हैं आयें जरुर आप यहाँ 

ये मुल्क देखने के लायक़ तो है ,हसीन नहीं | 


ज़रा सा तौर -तरीकों में हेर -फेर करो ,

तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं |

Saturday, April 26, 2014

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए / ग़ालिब



मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए 
जोश-ए-क़दह[1] से बज़्म-ए-चिराग़ां किये हुए 

करता हूँ जमा फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त[2] को 
अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़गां[3] किये हुए 

फिर वज़ा-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम 
बरसों हुए हैं चाक गिरेबां किये हुए 

फिर गर्म-नाला हाये-शररबार[4] है नफ़स 
मुद्दत हुई है सैर-ए-चिराग़ां[5] किये हुए 

फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल[6] को चला है इश्क़ 
सामान-ए-सद-हज़ार-नमकदां[7] किये हुए 

फिर भर रहा है ख़ामा-ए-मिज़गां[8] ब-ख़ून-ए-दिल 
साज़-ए-चमन-तराज़ी-ए-दामां[9] किये हुए 

बाहमदिगर[10] हुए हैं दिल-ओ-दीदा फिर रक़ीब 
नज़्ज़ारा-ओ-ख़याल का सामां किये हुए 

दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत[11] को जाये है 
पिंदार[12] का सनम-कदा[13] वीरां किये हुए 

फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब 
अर्ज़-ए-मताअ़ ए-अ़क़्ल-ओ-दिल-ओ-जां[14] किये हुए 

दौड़े है फिर हरेक गुल-ओ-लाला पर ख़याल 
सद-गुलसितां निगाह का सामां किये हुए 

फिर चाहता हूँ नामा-ए-दिलदार[15] खोलना 
जां नज़र-ए-दिलफ़रेबी-ए-उन्वां किये हुए 

माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम[16] पर हवस[17] 
ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशां[18] किये हुए 

चाहे फिर किसी को मुक़ाबिल[19] में आरज़ू
सुर्मे से तेज़ दश्ना-ए-मिज़गां[20] किये हुए 

इक नौबहार-ए-नाज़[21] को ताके है फिर निगाह 
चेहरा फ़ुरोग़-ए-मै से गुलिस्तां किये हुए 

फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें 
सर ज़रे-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबां किये हुए 

जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत, कि रात दिन 
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां[22] किये हुए 

"ग़ालिब" हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क[23] से 
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ां[24] किये हुए

शब्दार्थ:
  1.  प्यालों की भरमार से
  2.  ज़िगर के टुकड़ों को
  3.  पलकों की दावत(जो जिगर खिलाकर की जाती है)
  4.  आग बरसाने वाले से आर्तनाद में लीन
  5.  दीपोत्सव की सैर
  6.  दिल के घाव का हालचाल पूछना
  7.  लाख़ों नमकदान लिए हुए
  8.  पलकों की लेखनी
  9.  दामन पर फूलों के चमन खिलाने का प्रबंध
  10.  आपस में
  11.  प्रेयसी की गली(जहाँ धिक्कार मिलता है)
  12.  अहम
  13.  देवालय
  14.  बुद्धी, ह्रदय और प्राणों का समर्पण
  15.  प्रियतम का पत्र
  16.  होठों पर
  17.  तीव्र लालसा
  18.  कोली ज़ुल्फ़ें चेहरे पर बिखेरे हुए
  19.  (अपने) सामने
  20.  पलकों की कटार
  21.  जवानी की बहार
  22.  प्रेयसी की कल्पना
  23.  आँसुओं का उबाल
  24.  तूफ़ान बरपा करने का दृढ़ निश्चय

muddat huii hai yaar ko mahamaa.N kiye hue
josh-e-qadah se bazm charaaGaa.N kiye hue 
[qadah=goblet ] 

karataa huu.N jamaa phir jigar-e-laKht-laKht ko
arsaa huaa hai daavat-e-mizshgaa.N kiye hue 
[laKht=piece, mizshgaa.N=eyelid ] 

phir vazaa-e-ehatiyaat se rukane lagaa hai dam
baraso.n hue hai.n chaak girebaa.N kiye hue 
[vazaa=conduct/behaviour, ehatiyaat=care, chaak=torn, girebaa.N=collar ] 

phir garm_naalaa haaye sharar_baar hai nafas
muddat huii hai sair-e-charaaGaa.N kiye hue 
[sharar_baar=raining sparks of fire, nafas=breath ] 

phir pursish-e-jaraahat-e-dil ko chalaa hai ishq
saamaa.N-e-sad_hazaar namak_daa.N kiye hue 
[pursish=enquiry, jaraahat (or jiraahat)=surgery, sad=hundred] 
[namak_daa.N=container to keep salt ] 

phir bhar rahaa huu.N Khaamaa-e-mizshgaa.N baa_Khuun-e-dil
saaz-e-chaman_taraazii-e-daamaa.N kiye hue 
[ Khaama=pen, mizhgaa.N=eyelid, saaz=disposition, taraazii=consenting ] 

baa_ham_digar hue hai.n dil-o-diidaa phir raqiib
nazzaaraa-o-Khayaal kaa saamaa.N kiye hue 
[ham_digar=mutual/in betveen, saamaa.N=confront ] 

dil phir tavaaf-e-kuu-e-malaamat ko jaaye hai
pi.ndaar kaa sanam_kadaa viiraa.N kiye hue 

[tavaaf=circuit, kuu=lane/street, malaamat=blame]
[pi.ndaar=pride/arrogance, sanam_kadaa=temple ] 

phir shauq kar rahaa hai Khariidaar kii talab
arz-e-mataa-e-aql-o-dil-o-jaa.N kiye hue 
[talab=search, mataa=valuables ] 

dau.De hai phir har ek gul-o-laalaa par Khayaal
sad_gul_sitaa.N nigaah kaa saamaa.N kiye hue 

phir chaahataa huu.N naamaa-e-dil_daar kholanaa
jaa.N nazar-e-dil_farebii-e-unvaa.N kiye hue 
[naama-e-dildaar=love letter, unvaa.N=title] 

maa.Nge hai phir kisii ko lab-e-baam par havas
zulf-e-siyaah ruKh pe pareshaa.N kiye hue 
[lab-e-baam=the corner of a terrace, siyaah=black/dark ] 

chaahe phir kisii ko muqaabil me.n aarazuu
surme se tez dashnaa-e-mizshgaa.N kiye hue 
[muqaabil=confronting, dashnaa=dagger, mizshgaa.N=eyelids ] 

ik nau_bahaar-e-naaz ko taake hai phir nigaah
chehara furoG-e-mai se gulistaa.N kiye hue 
[nau_bahaar-e-naaz=lover, furoG=light/bright ] 

phir jii me.n hai ki dar pe kisii ke pa.De rahe.n
sar zer baar-e-minnat-e-darbaa.N kiye hue 
[sar zer baare=bowed head] 

jii Dhuu.NDhataa hai phir vahii fursat ke raat din
baiThe rahe.n tasavvur-e-jaanaa.N kiye hue 
[tasavvur=imagination] 

'Ghalib' hame.n na chhe.D ki phir josh-e-ashk se
baiThe hai.n ham tahayyaa-e-tuufaa.N kiye hue 
[tahayyaa=determined ] 

Saturday, April 5, 2014

अपनी धुन में रहता हूँ :नासिर काज़मी












अपनी धुन में रहता हूँ, मैं भी तेरे जैसा हूँ 

ओ पिछली रुत के साथी
, अब के बरस मैं तन्हा हूँ 


तेरी गली में सारा दिन
, दुख के कंकर चुनता हूँ 

मुझ से आँख मिलाये कौन
, मैं तेरा आईना हूँ


मेरा दिया जलाये कौन
, मैं तेरा ख़ाली कमरा हूँ

तू जीवन की भरी गली
, मैं जंगल का रस्ता हूँ


अपनी लहर है अपना रोग
, दरिया हूँ और प्यासा हूँ
 

आती रुत मुझे रोयेगी
, जाती रुत का झोंका हूँ

apanii dhun me.n rahataa huu.N

apanii dhun me.n rahataa huu.N
mai.n bhii tere jaisaa huu.N

o pichhalii rut ke saathii
ab ke baras mai.n tanhaa huu.N

terii galii me.n saaraa din
dukh ke kankar chunataa huu.N

mujh se aa.Nkh milaaye kaun
mai.n teraa aa_iinaa huu.N

meraa diyaa jalaaye kaun
mai.n teraa Khaalii kamaraa huu.N

tuu jiivan kii bharii galii
mai.n jangal kaa rastaa huu.N

apanii lahar hai apanaa rog
dariyaa huu.N aur pyaasaa huu.N

aatii rut mujhe royegii
jaatii rut kaa jho.Nkaa huu.N

नासिर काज़मी

जन्म: 08 दिसंबर 1925, निधन: 02 मार्च 1972

जन्म स्थान: अंबाला, पंजाब, भारत

कुछ प्रमुख कृतियाँ: पहली बारिश, निशात-ए-ख़्वाब, मैं कहाँ चला गया