मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए
जोश-ए-क़दह
[1] से बज़्म-ए-चिराग़ां किये हुए
करता हूँ जमा फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त
[2] को
अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़गां
[3] किये हुए
फिर वज़ा-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम
बरसों हुए हैं चाक गिरेबां किये हुए
फिर गर्म-नाला हाये-शररबार
[4] है नफ़स
मुद्दत हुई है सैर-ए-चिराग़ां
[5] किये हुए
फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल
[6] को चला है इश्क़
सामान-ए-सद-हज़ार-नमकदां
[7] किये हुए
फिर भर रहा है ख़ामा-ए-मिज़गां
[8] ब-ख़ून-ए-दिल
साज़-ए-चमन-तराज़ी-ए-दामां
[9] किये हुए
बाहमदिगर
[10] हुए हैं दिल-ओ-दीदा फिर रक़ीब
नज़्ज़ारा-ओ-ख़याल का सामां किये हुए
दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत
[11] को जाये है
पिंदार
[12] का सनम-कदा
[13] वीरां किये हुए
फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब
अर्ज़-ए-मताअ़ ए-अ़क़्ल-ओ-दिल-ओ-जां
[14] किये हुए
दौड़े है फिर हरेक गुल-ओ-लाला पर ख़याल
सद-गुलसितां निगाह का सामां किये हुए
फिर चाहता हूँ नामा-ए-दिलदार
[15] खोलना
जां नज़र-ए-दिलफ़रेबी-ए-उन्वां किये हुए
माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम
[16] पर हवस
[17]
ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशां
[18] किये हुए
चाहे फिर किसी को मुक़ाबिल
[19] में आरज़ू
सुर्मे से तेज़ दश्ना-ए-मिज़गां
[20] किये हुए
इक नौबहार-ए-नाज़
[21] को ताके है फिर निगाह
चेहरा फ़ुरोग़-ए-मै से गुलिस्तां किये हुए
फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें
सर ज़रे-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबां किये हुए
जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत, कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां
[22] किये हुए
"ग़ालिब" हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क[23] से
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ां[24] किये हुए
शब्दार्थ:
- ↑ प्यालों की भरमार से
- ↑ ज़िगर के टुकड़ों को
- ↑ पलकों की दावत(जो जिगर खिलाकर की जाती है)
- ↑ आग बरसाने वाले से आर्तनाद में लीन
- ↑ दीपोत्सव की सैर
- ↑ दिल के घाव का हालचाल पूछना
- ↑ लाख़ों नमकदान लिए हुए
- ↑ पलकों की लेखनी
- ↑ दामन पर फूलों के चमन खिलाने का प्रबंध
- ↑ आपस में
- ↑ प्रेयसी की गली(जहाँ धिक्कार मिलता है)
- ↑ अहम
- ↑ देवालय
- ↑ बुद्धी, ह्रदय और प्राणों का समर्पण
- ↑ प्रियतम का पत्र
- ↑ होठों पर
- ↑ तीव्र लालसा
- ↑ कोली ज़ुल्फ़ें चेहरे पर बिखेरे हुए
- ↑ (अपने) सामने
- ↑ पलकों की कटार
- ↑ जवानी की बहार
- ↑ प्रेयसी की कल्पना
- ↑ आँसुओं का उबाल
- ↑ तूफ़ान बरपा करने का दृढ़ निश्चय
muddat huii hai yaar ko mahamaa.N kiye hue
josh-e-qadah se bazm charaaGaa.N kiye hue
[qadah=goblet ]
karataa huu.N jamaa phir jigar-e-laKht-laKht ko
arsaa huaa hai daavat-e-mizshgaa.N kiye hue
[laKht=piece, mizshgaa.N=eyelid ]
phir vazaa-e-ehatiyaat se rukane lagaa hai dam
baraso.n hue hai.n chaak girebaa.N kiye hue
[vazaa=conduct/behaviour, ehatiyaat=care, chaak=torn, girebaa.N=collar ]
phir garm_naalaa haaye sharar_baar hai nafas
muddat huii hai sair-e-charaaGaa.N kiye hue
[sharar_baar=raining sparks of fire, nafas=breath ]
phir pursish-e-jaraahat-e-dil ko chalaa hai ishq
saamaa.N-e-sad_hazaar namak_daa.N kiye hue
[pursish=enquiry, jaraahat (or jiraahat)=surgery, sad=hundred]
[namak_daa.N=container to keep salt ]
phir bhar rahaa huu.N Khaamaa-e-mizshgaa.N baa_Khuun-e-dil
saaz-e-chaman_taraazii-e-daamaa.N kiye hue
[ Khaama=pen, mizhgaa.N=eyelid, saaz=disposition, taraazii=consenting ]
baa_ham_digar hue hai.n dil-o-diidaa phir raqiib
nazzaaraa-o-Khayaal kaa saamaa.N kiye hue
[ham_digar=mutual/in betveen, saamaa.N=confront ]
dil phir tavaaf-e-kuu-e-malaamat ko jaaye hai
pi.ndaar kaa sanam_kadaa viiraa.N kiye hue
[tavaaf=circuit, kuu=lane/street, malaamat=blame]
[pi.ndaar=pride/arrogance, sanam_kadaa=temple ]
phir shauq kar rahaa hai Khariidaar kii talab
arz-e-mataa-e-aql-o-dil-o-jaa.N kiye hue
[talab=search, mataa=valuables ]
dau.De hai phir har ek gul-o-laalaa par Khayaal
sad_gul_sitaa.N nigaah kaa saamaa.N kiye hue
phir chaahataa huu.N naamaa-e-dil_daar kholanaa
jaa.N nazar-e-dil_farebii-e-unvaa.N kiye hue
[naama-e-dildaar=love letter, unvaa.N=title]
maa.Nge hai phir kisii ko lab-e-baam par havas
zulf-e-siyaah ruKh pe pareshaa.N kiye hue
[lab-e-baam=the corner of a terrace, siyaah=black/dark ]
chaahe phir kisii ko muqaabil me.n aarazuu
surme se tez dashnaa-e-mizshgaa.N kiye hue
[muqaabil=confronting, dashnaa=dagger, mizshgaa.N=eyelids ]
ik nau_bahaar-e-naaz ko taake hai phir nigaah
chehara furoG-e-mai se gulistaa.N kiye hue
[nau_bahaar-e-naaz=lover, furoG=light/bright ]
phir jii me.n hai ki dar pe kisii ke pa.De rahe.n
sar zer baar-e-minnat-e-darbaa.N kiye hue
[sar zer baare=bowed head]
jii Dhuu.NDhataa hai phir vahii fursat ke raat din
baiThe rahe.n tasavvur-e-jaanaa.N kiye hue
[tasavvur=imagination]
'Ghalib' hame.n na chhe.D ki phir josh-e-ashk se
baiThe hai.n ham tahayyaa-e-tuufaa.N kiye hue
[tahayyaa=determined ]